गलतहिसाब
जननी अपने दादाजी की आने की बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी। उनसे एक बहुत ज़रूरी सवाल पूछना था। उसका गणित का हिसाब सही था या गलत।
फिर एक बार अपनी परीक्षा पेपर पर नज़र मारी। एक उत्तर पर एक लंबी लाल रेखा खींची हुई थी और मार्जिन में एक बड़ा लाल शून्य। चार साल की जननी को यह मालूम था की शून्य लगाया तो जवाब गलत है।
लेकिन 7×2 = 14 कैसे गलत है, यही उसको समझ नहीं आ रहा था।
पिछले महीने ही जननी चार साल की हुई थी। चार साल के लिए उसका दिमाग काफी तेज़ था। पल भर भी चुप नहीं बैठती थी। हाथ कुछ न कुछ करता था और ज़ुबान चलती रहती थी। समुद्र क्यों नीला है और पेड़ क्यों हरा। चमकीले काग़ज़ कौन बनाता है। बारिश में भीगने से भैंस को सर्दी नहीं लगेगा? कंप्यूटर कैसे सब कुछ जानता है? क्या भगवान कंप्यूटर हैं? जननी के सवालों का जवाब देना मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंकने के बराबर। एक सवाल का जवाब दिया तो पीछे ही सौ सवाल निकलते थे। अगर वह बात करना शुरू करती तो पापा बोलते – “चुप रहो जननी” और माँ कहती – “ऐसे नहीं बोलते जननी”।
लेकिन दादाजी जवाब देते थे, बिना थके और बिना ऊबे। मानो वे खुद बच्चा बन गए हों और एक बच्चे के उत्साह से जवाब देते थे। धीरे धीरे दादाजी ने जननी को सिखाया सवाल किये बगैर जवाब कैसे ढूँढें। दादाजी ने यह भी सिखाया था की अलग नज़रिये से सोचने पर कैसे जवाब मिलता है और कैसे सब कुछ अलग दिखता है। कॅल्क्युलेटर में 7 दबाकर उल्टा दिखाते थे और बोलते “यह लो L!”। 3 दबाकर बोलते E, और 0 को O और 1 को L कहते।
दादाजी को ज़रूर पता होगा उसका जवाब कैसे गलत था।
पेपर देखते ही दादाजी भड़क उठे। “0?! यह क्या! क्या सवाल था? ज़रा प्रश्न पत्र दिखाओ।” दादाजी ने ज़ोर से सवाल को पढ़ा। ‘एक हफ़्ते में सात दिन। दो हफ्तों में कितने दिन?’। वे जननी के परीक्षा पेपर को खोल कर देखे।
जननी ने लिखा था 7×2 = 14।
जननी के जवाब के ऊपर अध्यापिका की लाल रेखा और मार्गिन में एक बड़ा शून्य।
“दादाजी क्या यह गलत है? और कैसे?”
“यही मुझे समझ नहीं आ रहा” दादाजी ने कहा।
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अगले दिन दादाजी दफ्तर से छूट्टी लेकर जननी के साथ उसके स्कूल गए। साथ लाए परीक्षा पेपर को गणित के अध्यापिका को दिखाये।
“इसमे गलत क्या है जी?”।
“यह गलत है।”
“कैसे? बताईये।”
अध्यापिका ने दादाजी को शांत किया।
“बताती हूँ। यही सवाल हमने कक्षा में किया हुआ है।”
“कैसे?”
“एक हफ़्ते में सात दिन। तो दो हफ्तों में 2×7 = 14।”
“ठीक है। अगर बच्चा 7×2 = 14 लिखें तो क्या यह गलत है?”
“गलत ही है। कक्षा में जैसे सिखाया गया वैसे ही लिखना चाहिए। जब 2×7 = 14 सिखाया है,
अगर 7×2 = 14 लिखा तो यह गलत ही है।”
“अध्यापिकाजी, यह अन्याय है” दादाजी चिल्लाए और बोले “मैं प्रिन्सिपल से शिकायत करूंगा।”
“ठीक है, जैसी आपकी मर्ज़ी” अध्यापिका ने लापरवाही से जवाब दिया।
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प्रिन्सिपल ने चश्मा पहनकर प्रश्न पत्र और परीक्षा पेपर दोनों को बार बार देखें।
दादाजी के बात को गौर से सुने और बोले –
“ज़रा ठहरिये, मैं अभी अध्यापिका से पूछता हूँ।”
गणित के अध्यापिका को बुलाया गया। अध्यापिका को पहले से ही इंतेज़ार था और इसलिए गणित के कॉपी साथ लेकर आई।
“यह क्या है जी?” प्रिन्सिपल ने पूछा।
“जी, यह सवाल हमने कक्षा में करके दिखाया हुआ है।” कॉपी को प्रिन्सिपल के सामने खोला और दिखाया।
“लेकिन जननी ने इस प्रकार उत्तर नहीं दिया।”
“लेकिन 7×2 = 14 कैसे गलत है?” दादाजी गुस्से से बोले।
“ऐसा नहीं है जी। बच्चा कक्षा में कितना ध्यान देता है, यह जानने के लिये यह सवाल दिया गया था” अध्यापिका बोली।
“माफ कीजिये। लगता है आपकी पोती कक्षा में ठीक से ध्यान नहीं देती। आप उसे समझाइये।” – प्रिन्सिपल बोले।
दादाजी गुस्से से कुर्सी को ज़ोर से पीछे सरकाये और खड़े हुए।
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शिक्षा अधिकारी से मिलने के लिये दादाजी को दो घंटे से ज़्यादा इंतेज़ार करना पड़ा। बरामदे में बैठकार अधिकारी के हस्ताक्षर के लिये आने जाने वाले काग़ज़ के गठरी को ही देखते रहे। काम खतम करके बाहर निकलने से पेहले शिक्षा अधिकारी ने दादाजी को अंदर बुलाया।
शुरू करते ही बोले – “मुझे ज़रा जल्दी है। पांच मिनिट के अंदर जो कुछ कहना है, कहिये।”
दादाजी सब कुछ जल्दी जल्दी बताने लगे।
अधिकारी बीच में ही टोक दिये और बोले – “यह LKG – UKG का मामला है और हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”
“ठीक है। लेकिन आपको नहीं लगता यह अन्याय है?” दादाजी ने पूछा।
“क्या?”
“सही जवाब देने पर भी 0 अंक देना”
“आपकी पोती ने जो जवाब दिया है वह बिल्कुल गलत नहीं है। कुछ हद्द तक सही है”।
दादाजी आधे मिनिट सोचने लगे।
“क्या आप लिखित में दे सकते हैं की यह आधा सही है?”
“क्या लिखूं 7×2 = 14 यही ना?”
“जी”।
“ऐसा नहीं है जी। पहली बात यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है और दूसरा सिर्फ लक्ष्य नहीं, लक्ष्य तक ले जाने वाला रास्ता भी सही होना चाहिये।”
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दादाजी निर्णय नहीं कर पा रहे थे की इस समस्या को मंत्री तक ले जाने की अवश्यकता है या नहीं।
दादाजी ने सोचा मंत्री तक जाने से पहले एक बार जननी के माता पिता से इस विषय में बात करना अच्छा रहेगा। वे शायद नाराज़ भी हो सकते हैं की उनसे पूछे बगैर यह सब क्यों किया। शायद इस बात पर झगड भी सकते हैं की इसका अंजाम – बुरा या भला – उनके बेटी पर ही पड़ेगा।
लेकिन आँखों के सामने बच्चे के साथ हो रहे अन्याय को देख कर वे चुप नहीं बैठ सकते। उनकी आत्मशक्ति इतनी कमज़ोर नहीं पड़ी अभी तक। इसलिये रात को खाना खाते वक़्त दादाजी ने धीरे से इस बात को छेड़ा।
“पिताजी, बेशक अध्यापिका का कहना गलत हों लेकिन जैसे उन्होने सिखाया वैसे क्यों नहीं लिख सकती जननी परीक्षा में?” – जननी के पिता बोले।
“मान लिया जननी ने नहीं लिखा। क्या यह गलत है?” दादाजी ने सवाल किया।
“वह क्यों नहीं लिखी?” माँ बोली।
“उसी से पूछो” दादाजी बोले।
“जननी, इधर आओ।” पिताजी गुस्से से बुलाये ।
“जी पिताजी” जननी दौड़ कर आई।
“एक हफ़्ते में सात दिन तो बताओ दो हफ़्ते में कितने दिन?”
जननी समझ नहीं पा रही थी की पिताजी अध्यापिका के सवाल को क्यों दोहरा रहे हैं और धीरे से बोली –
“14”।
“कैसे?”
“7×2 = 14”
“7×2 = 14 कैसे?”
“एक हफ़्ते में सात दिन तो 2×7 ही आयेगा ना?” दादाजी ने पूछा।
“नहीं दादाजी, एक हफ़्ते में एक सोमवार, एक् मंगलवार। ऐसे सात दिन हैं। दो हफ्ते में दो इतवार, दो सोमवार।” जननी उंगली से गिनने लगी।
“सात दिन और हर एक दिन दो बार आता है इसलिये 7×2 = 14।”
“बहुत अच्छा!” दादाजी खुशी से उछले।
“यह अलग सोच है। जब पूरी कक्षा लगाम से बंधे हुए घोड़ों की तरह अध्यापिका के बताये हुए रास्ते पर चलते हैं, तुमने अपने दिमाग का उपयोग करके सवाल का जवाब दिया है। यही असली हुनर है, यही असली सृजन है” दादाजी खुशी से फूले न समा रहे थे।
“यह खुशी की नहीं चिंता की बात है पिताजी” जननी के पिता बोले।
“तुम यह क्या कह रहे हो?” दादाजी परेशन हो उठे।
“पिताजी याद रखना, जननी लड़की है। अलग सोच वाली है। बड़ी होने के बाद बहुत सवाल करेगी। समाज के रीति रिवाज़ और विश्वास के खिलाफ प्रश्न पूछेगी। अपनी अलग सोच की वजह से जननी और घायल हो जायेगी। अगर दुनिया के साथ ताल मेल नहीं बिठा पायेगी तो उसे भी कष्ट होगा और दूसरों को भी।”
“मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो?”
“जैसे तुम्हारी अध्यापिका कक्षा में सिखाती है वैसे ही करना। अपनी मर्ज़ी मत चलाना जननी” – पिताजी यह कह कर उठ गये।
दादाजी जननी को एकटक देखते रहे और उसे कस कर गले लगा लिये।
उनकी आँखें नम थी।
Translated from Tamil by Niranjana Madhavi Sundar
This short story was filmed by Mr. Balu Mahendra
One thought on “गलतहिसाब”
இதோட தமிழ் பதிப்பு இருக்குங்களா சார்?